के इस राज्य में युगों-युगों से संस्कृत एवं संस्कृति की विमल धारा प्रवाहित होती रही
2.
विक्रम पूर्व पञ्चमशतक से लेकर आज तक न्याय दर्शन की विमल धारा अबाध गति से प्रवाहित है।
3.
दृष्टि उनकी हर हृदय में, चाँदनी बनकर खिली है॥ जो अँधेरे में भटकते, हम उन्हें खोजें पुकारें॥ हो द्रवित तप से हिमालय, ने विमल धारा बहायी।
4.
अहिंसा की विमल धारा प्रांतवाद, भाषावाद, पंथवाद और सम्प्रदायवाद के क्षुद्र धेरे में कभी आबद्ध नहीं होती और न किसी व्यक्ति विशेष की निजी धरोहर बन सकती है।